इनफर्टिलिटी को समझे

बांझपन (इनफर्टिलिटी) की परिभाषा है, ” एक साल के नियमित और अनिरोधित संभोग के बावजूद गर्भ धारण करने में असमर्थ रहना” |  आपकी अपेक्षा से इनफर्टिलिटी अधिक सामान्य है। यह दुनिया भर के 8 में से 1 जोड़ों को प्रभावित करता है। बांझपन पुरुष और महिलाएँ दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है। यदि आप या आपके कोई निकट परिचित गर्भ धारण करने के लिए असमर्थ रहे हैं, तो उस के विभिन्न कारणों को समझने के लिए आगे पढ़ें।

पॉलिसिस्टिक ओव्हॅरियन सिंड्रोम (पीसीओएस- PCOS)

पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम (पीसीओएस) प्रजनन आयु की महिलाओं में एक हार्मोनल विकार है। दुनिया भर में, लगभग 8-13% महिलाएँ, याने दस में से एक (जिन की उम्र रजस्वला से रजोनिवृत्ति इस के बिच में हो) इस व्यथा से प्रभावित हैं | भारत में, यह मात्रा तीनगुनी है | लगभग 10 में से 3 महिलाओं में पीसीओएस पाया जाता है।

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PCOS के कारण क्या है?

PCOS का सटीक कारण अज्ञात है | आनुवंशिकी (जेनेटिक्स), हार्मोन और जीवनशैली सम्बंधित कई कारक पीसीओएस में भूमिका निभाते हैं। PCOS त्रस्त महिलाओं में PCOS त्रस्त मां, बहन या मौसी होने की संभावना अधिक होती है।

PCOS के संकेत या लक्षण क्या हैं?

  • माहवाह पिरियड में अनियमितता या रूकावट
  • चेहरे, पेट और पीठ पर बालों का विकास 
  • सर के बालों का झड़ना या पतला होना 
  • तैलीय त्वचा, मुंहासे (पिंपल्स) जो तीव्र हो सकते हैं  
  • गर्दन के परतों में, कमर में और स्तनों के नीचे त्वचा का काला पड़ना 
  • वजन-बढ़ोतरी का रुझान और वजन कम करने में कठिनाई
  • भावनात्मक समस्याएं (चिंता, अवसाद-डिप्रेशन, अपने शरीर के छवि के बारेमे अवास्तविक ध्यान केंद्रित करना) 
  • गर्भवती होने में कठिनाई

पीसीओएस के लक्षण भिन्न होते हैं, और समय के साथ बदलते भी हैं। कुछ महिलाओं में बहुत कम और हल्के लक्षण होते हैं, जबकि अन्य में अधिक गंभीर और व्यापक लक्षण होते हैं। 

PCOS का निदान कैसे किया जाता है? 

पीसीओएस के निदान के लिए चिकित्सा इतिहास, परीक्षा, रक्त परीक्षण एवं अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता हैं | केवल अल्ट्रासाउंड के दौरान पॉलिसिस्टिक अंडाशय दिखाई देना या रिपोर्ट में उस का जिक्र होना इसका मतलब यह नहीं की आप पीसीओएस बाधित हैं |  पीसीओएस निदान के लिए निम्न निर्देशित तीन मानदण्डों में से दो का मौजूद होना जरूरी है | 

१. माहवारी अनियमित, असमान होना या उस में बिलकुल रूकावट आना

२. चेहरे या शरीर के बालों में वृद्धि और/या रक्त परीक्षणों में सामान्य से अधिक टेस्टोस्टेरोन का स्तर दिखाई देना

३. अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में पॉलीसिस्टिक अंडाशय निर्देशित होना

पीसीओएस से सम्बंधित स्वास्थ्य समस्याएँ क्या हैं? 

पीसीओएस के साथ कई महिलाओं को अपना वजन प्रबंधित करने में कठिनाई होती हैं | वजन आसानीसे बढ़ता हैं या कम करनेमें दिक्कत होती है| पीसीओएस के साथ कुछ महिलाए सामान्य वजन बनाए रख सकती हैं लेकिन फिर भी उन्हें प्रजनन चुनौतियाँ, एंड्रोजेन हार्मोन में वृद्धि तथा मधुमेह और ह्रदय रोग की जोख़िम का सामना करना पड़ सकता हैं | पीसीओसेस त्रस्त महिलाओं में अवसाद और चिंता अधिक आम हैं | पीसीओएस के साथ महिलाओं को अक्सर स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण करना मुश्किल होता है | हार्मोन का असंतुलन नियमित चक्रीय विकास को और परिपक्व अंडे की रिहाई को रोकता है |

ऐसे हालात में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह्रदय तथा रक्तवाहिकाओं सम्बन्धी विकारों (हृद्रोग या आघात) का खतरा बढ़ता हैं | सक्रिय जीवनशैली, स्वस्थ आहार और वजन में कमी के साथ इन खतरों को कम किया जा सकता है | जो महिलाएँ लम्बे समय तक एमेनोर्हीया- amenorrhoea से  (माहवारी ना होना) पीड़ित हैं उनके गर्भाशय का अंदरूनी परत (लाइनिंग) गाढ़ा बन सकता है और उन को गर्भाशय के अन्तःस्तर ( एंडोमेट्रियम – endometrium) के कैन्सर का धोका संभव होता हैं |  

क्या पीसीओएस बाधित महिला गर्भवती बन सकती हैं? 

इस सवाल का जवाब “हाँ” है | पीसीओएस होने का मतलब गर्भधारणा नामुमकिन है ऐसा बिलकुल नहीं | पीसीओएस गर्भधारणा रोकनेवाला एक आम कारक है | लेकिन उसका इलाज भी हो सकता है |

पीसीओएस बाधित महिलाओं को गर्भवती बनने के लिए उपचार के क्या विकल्प उपलब्ध हैं? 

वजन पर काबू करना: स्वस्थ आहार और रोजाना शारीरिक व्यायाम- माहवारी नियमित करने के लिए और प्रजनन क्षमता में सुधार लाने में मददगार हैं | 

डिम्बोत्सर्जन प्रेरित करना (ओव्यूलेशन इंडकशन – ovulation induction): बांझपन के अन्य कारण ख़ारिज करने के बाद अंडाशय से अण्डों (डिम्ब) का उत्सर्जन दवाइयों के मदद से प्रेरित करने का उपाय किया जाता है | 

सहायक प्रजनन तकनीक का इस्तेमाल: समागम के उपरांत उपरोक्त उपाय विफल हो जाए या गर्भधारण न होने के लिए पतिसम्बधित कोई कारण हो तो अंतर्गर्भाशयी वीर्यसेचन (Intrauterine insemination IUI – इंट्रायुटेरिन इनसेमिनेशन – आययुआय) का विकल्प निर्देशित होता है | कई प्रयासों के बाद भी आययुआय असफल रहा या यदि ट्यूब अवरुद्ध हो, या कोई पौरुषेय गंभीर कारण उपस्थित हो तो आयव्हीएफ/आयसीएसआय (IVF/ICSI) के विकल्पों का प्रयोजन किया जाता है |

एंडोमेट्रिओसिस

गर्भाशय के अंतर्गत परत को (सतह को) एंडोमेट्रियम कहते हैं | इस परत का कोई ऊतक (टिश्यू) गर्भाशय के बहार पाया जाये तो उस हालात को एंडोमेट्रीओसिस कहा जाता है | दस में से एक महिला इस हालात से त्रस्त होती है |

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एंडोमेट्रिओसिस के कारण क्या है?

इस का सटीक कारण क्या हैं यह कहा नहीं जा सकता | लेकिन, कुछ संभाव्य कारण इस प्रकार हैं-

  • माहवारी बहाव की समस्याएँ: माहवारी बहाव विपरीत दिशा में जाना यह ज्यादातर सम्भाव्य कारण हो सकता है | गर्भाशय का अंतर्गत ऊतक माहवारी के दरम्यान फलोपियन ट्यूबसे (नालिकासे) विपरीत दिशा में पेडी की (पेल्विस) तरफ बढ़ता है |
  • अनुवांशिक कारक: एंडोमेट्रिओसिस परिवारों में चलता नजर आता है | 
  • शरीर की प्रतिरक्षा व्यवस्था सम्बंधित (इम्युनिटी) समस्याएँ: अगर शरीर की प्रतिरक्षा व्यवस्था में कोई कमी हो तो एंडोमेट्रियम का कोई ऊतक गर्भाशय के बाहर प्रत्यारोपित हो कर बढ़ सकता है | उसे नष्ट करने में प्रतिरोधक व्यवस्था नाकामयाब रहती है |
  • हार्मोन:एस्ट्रोजेन हार्मोन एंडोमेट्रिओसिस को बढ़ावा देता हुआ नजर आता है | 
  • क्षतिग्रस्त एंडोमेट्रिओसिस: सिज़ेरियन (सी-सेक्शन) या गर्भाशयछेदन शल्य चिकित्सा के दौरान गर्भाशय के अंदरूनी परत का ऊतक क्षति में अनजाने चिपक कर बढ़ सकता है |

 

एंडोमेट्रिओसिस के लक्षण क्या होते हैं? 

१. आम तौर पे दर्द का एहसास दिखाई देता है | कई प्रकार के दर्द का एहसास हो सकता हैं, जैसे की  

  • माहवारीदौरान सख्त सिकुड़न का दर्द (क्रैम्प्स)
  • पीठ के निचे वाले हिस्से में (क्रोनिक) दर्द
  • समागम दौरान या समागम के पश्चात् दर्द
  • पेट में दर्द
  • माहवारी के दौरान मलत्यागया मूत्रत्याग करते वख्त दर्द होना | कुछ महिलाओं को मल-मूत्र में रक्तस्राव महसूस होता है|                                                                                                                                            

२. माहवारी न होते हुए भी खून बहना या खून के धब्बे दिखना (स्पॉटिंग)

३. ज्यादा मात्रा में खून का बहाव होना 

४. गर्भधारण की अक्षमता (इनफर्टिलिटी)

५. दस्त, कब्ज़, पेट का फुलाव, पेट में मचलन जैसे पाचन व्यवस्था से सम्बंधित, खास करके माहवारी दरम्यान उभरनेवाली समस्याओंकी मौज़ूदगी

कई महिलाओं को इसमें से कोई भी लक्षण संत्रस्त नहीं करते |  

एंडोमेट्रिओसिस गर्भधारण को प्रभावित कैसे करता है? 

एंडोमेट्रिओसिस कई तरीकों से गर्भधारणा को रोक सकता है | उस के कारण फलोपियन ट्यूब (डिम्बनलिका) को क्षति (स्कार) पहुँच सकती है, गर्भ के पास के अंग की रचना प्रभावित हो सकती है, तथा शरीर की रक्षा व्यवस्था में परिवर्तन, अंडे की गुणवत्ता पर असर, भ्रूण के प्रत्यारोपण में बाधा ऐसे अनेक किसम की कठिनाइयाँ एंडोमेट्रिओसिस के कारण उत्पन्न हो सकती हैं | 

एंडोमेट्रिओसिस का निदान कैसे किया जाता है?

अगर एंडोमेट्रिओसिस का संदेह हो तो पेशंट का वैद्यक-चकित्सा इतिहास देखा जाता है और उसकी शारीरिक जॉंच की जाती है | आप के फर्टिलिटी सलाहगार अल्ट्रासाउन्ड करने को कहेंगे | अल्ट्रासाउंड में अंडाशय पर कोष (सिस्ट) नजर आ सकते हैं (एंडोमेट्रीओमा) | लेकिन इनकी मौजूदगी अनिवार्य नहीं होती | अगर एंडोमेट्रिओसिस के निशान हलके और सतही हो तो वे अल्ट्रासाउंड जाँच में दिखाई नहीं देते | अंतिम निदान लैप्रोस्कोपी या शल्य चिकित्सा (ओपन सर्जरी) के बाद ही हो सकता है | 

एंडोमेट्रिओसिस से जुड़े बाँझपन का इलाज कैसे किया जाता है? 

एंडोमेट्रिओसिस और इनफर्टिलिटी के हर केस में लैप्रोस्कोपी करना अनिवार्य नहीं होता | महिला की आयु, बाँझपन का कालावधि, दर्द के लक्षण इन का ख्याल रखना जरुरी होता है | अगर दर्द की चिंता हो तो लैप्रोस्कोपी और शल्य चिकित्सा का मायना होता है | अगर बाँझपन के अन्य कारण न हो और संयत अथवा तीव्र एंडोमेट्रिओसिस का निदान स्पष्ट हो तो लैप्रोस्कोपी या कुछ मामलोंमें लैप्रोटोमी (बड़ा छेड़ देना) की सिफारिश की जाती है|  

दवाई का इलाज दर्द से राहत देने के लिए पर्याप्त रहता है | लेकिन गर्भनिरोधक गोलियाँ, प्रोजेस्टिन, GnRH सदृश या डानाझोल जैसी दवाइयोंका उपयोजन प्रजननक्षमता के लिए फायदेमंद होता है इसका कोई प्रमाण नहीं है | शल्य चिकित्सा पूर्व या उपरांत ऐसी दवाइयों का इलाज करना फर्टिलिटी चिकित्सा में और भी अनावश्यक रूकावट डाल सकता है |

युवा महिलाएँ जिन्हे एंडोमेट्रिओसिस के सिवा अन्य कोई कारक लक्षण नहीं हैं वे सर्जरी के बाद मातृत्व के अपेक्षा का प्रबंध करते हुए चौकन्ना इंतजार कर सकती हैं | अगर उचित समय के अंदर गर्भधारण न हो तो वे इंट्रायुटेरिन इनसेमिनेशन (आययुआय-IUI) या  आयव्हीएफ / आयसीएसआय (IVF/ICSI) की चिकित्सा करना सोच सकती हैं | एंडोमेट्रिओसिस त्रस्त महिलाओं का  IVF/ICSI चिकित्सा से  सफलता का अनुपात मातृत्वोच्छुक अन्य जोड़ों के सफलता अनुपात के समान ही है |

डिम्बवाही नलिकाओं की (फैलोपियन ट्यूब्स) समस्या

डिंबवाही नलिकाएँ नाज़ुक नलिकाएँ हैं | गर्भाशय के दो तरफ़ा एकेक नलिका निकलके दोनों अंडाशय तक पहुँचती हैं | ओवुलेशन (Ovulation) के पश्चात्, अंडा डिंबनालिका के जरिये गर्भाशय की तरफ प्रयाण करता है | शुक्राणु (स्पर्म) गर्भाशय में ऊपरी दिशा में चलते हुए डिंबनालिका के माध्यम से अंडे की तरफ चल देते हैं | शुक्राणु अंडे से डिंबवाही नलिका में मिलकर वहीँ गर्भाधान (फर्टीलायजेशन ) की क्रिया होती है | निषेचित अंडा गर्भाशय की तरफ लगावत के लिए बढ़ता हैं | अगर डिम्बनलिका का कोई हिस्सा क्षतिग्रस्त है या नलिका में कोई रूकावट हुई है तो नैसर्गिक रूप से गर्भाशय में गर्भधारणा हो नहीं पाती | 

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डिम्बवाही नलिकाओं की (फैलोपियन ट्यूब्स) समस्या के 10 महत्वपूर्ण तथ्य-

  1. डिम्बनलिका की पीड़ा स्त्रीजन्य इनफर्टिलिटी का एक प्रमुख कारण है | 
  2. अनेक कारकों से डिंबनालिका की पीड़ा उत्पन्न हो सकती है | उन में से कुछ कारक इस प्रकार हैं- यौनसम्बन्ध से संचारित श्रोणिप्रदेश का उपसर्ग (सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन), जननांग टीबी (जेनिटल टीबी), अस्थानिक गर्भावस्था का इतिहास (एक्टोपिक प्रेगनेंसी), एंडोमेट्रिओसिस, अपेंडिसाइटिस का इतिहास (खास कर के अपेंडिक्स का फूटना) या डिम्बनलिका की शस्त्रक्रिया | 
  3. साधारण, स्वस्थ डिम्बनलिका अल्ट्रासाउंड में दिखाई नहीं देती | नलिका अगर किसी वजह से फूली हुई हैं तो अल्ट्रासाउंड में दिखाई दे सकती है | 
  4. डिंबनालिका के परिक्षण के लिए हिस्टेरोसालपिंगोग्राम (एच एस जी HSG) नाम की टेस्ट करायी जाती है | 
  5. डिंबनालिका में कोई बाधा या रूकावट हो तो वह गर्भाशय के नजदीकी हिस्से में या अंडाशय के नजदीकी हिस्से में हो सकती है | नलिका के मध्यभाग में भी रूकावट हो सकती है लेकिन ऐसी अवस्था असाधारण होती है | 
  6. अगर नलिका में रूकावट गर्भाशय के नजदीकी हिस्से में हो तो कुछ मामलों में नलिका में कैथिटर डाल के रूकावट को हटाया जाता है | 
  7. अगर रूकावट नलिका के दूरवाले हिस्से में अंडाशय के नजदीक हो तो नलिका गुब्बारे जैसी फूल (हाइड्रोसालपिंक्स) सकती  है |  ऐसे मामले में आयव्हीएफ/आयसीएसआय (IVF/ICSI) प्रणाली का इस्तेमाल सूचित होता है | ऐसे केस में IVF/ICSI प्रणाली के सफलता के लिए फूली हुई नलिका को ऑपरेशन करके निकाल देना (साल्पिंगेक्टोमी) उचित रहता है | 
  8. जहाँ डिंबनलिका में रूकावट के कारण गर्भधारण संभव नहीं होता वहाँ इंट्रायुटेरिन इनसेमिनेशन (आययुआय-IUI) नहीं करना चाहिए | 
  9. जिन्हे डिंबनलिका का दोष हैं, भले ही वे किसी तकनीक से गर्भधारण करें, उन्हें एक्टोपिक प्रेगनेंसी होने का खतरा रहता है | IVF प्रणाली का इस्तेमाल करते हुए भी यह खतरा पूरी तरह से टलता नहीं | 
  10. जिन्हे केवल डिंबनालिकासंबधित दोष की वजह से गर्भधारण संभव नहीं होता उन्हें, अगर दूसरा कोई दोष न हो, तो IVF/ICSI प्रणाली से सफलता प्राप्त होने की अच्छी संभाव्यता रहती है |

स्त्री-बीज संचय की कमी (लो एग रिज़र्व)

स्त्री-बीजों की संख्या हर एक स्त्री के लिए जन्म से ही निश्चित होती है | उसके प्रजननक्षम आयु में हर माह कोशों (फॉलिकल्स) का एक गुट आगे बढ़ने के लिए तैयार होता है| हर एक कोष (फॉलिकल) में एक अपरिपक्व बीज होता  हैं | ऐसे हर बीज में हार्मोन की प्रेरणा से विकसित होने की शक्ति रहती है | लेकिन, सामन्यतः हर माह एक ही बीज परिपक्व अंडाणु (मैच्योर एग) में विकसित होता है | कोशस्थित अन्य बीज (फॉलिकल्स) जो परिपक्व अंडाणु में विकसित हो नहीं पाते वे फॉलिक्युलर अविवरता (अट्रेसीया) नामक प्रक्रिया में विघटित हो जाते हैं | यह प्रक्रिया हर माह जबतक गर्भधारण नहीं होता या रजोनिवृत्ति नहीं होती तब तक दोहराई जाती है |

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स्त्री बीजोंकी उपलब्ध संख्या ओव्हेरियन (एग) रिजर्व कहलाती है | अगर यह रिजर्व कम पड़ता है तो उसका माने अंडाशय में विकासयोग्य बीजों की संख्या कम हो गयी है ऐसा होता है | बढ़ते उम्र के साथ ऐसी घटाई स्वाभाविक है | लेकिन कुछ कारणवश जवान स्त्रियों में भी बीज-संचय में तेजी से घटाई होती नजर आती है | 

लो एग रिज़र्व के कारण क्या हैं?

  • बढ़ती उम्र
  • धूम्रपान
  • अनुवांशिक असामान्यताएँ (जैसे की फ्राजाईल एक्स सिंड्रोम, टर्नर सिंड्रोम)
  • कैंसर ट्रीटमेंट (रेडिएशन/केमोथेरपी)
  • अंडाशय की शल्य चिकित्सा (जैसे की एंडोमेट्रिओसिस के मामले में कराइ जाती है)
  • जब कोई कारण ज्ञात न हो (इडिओपैथिक)
 

ओव्हेरियन रिजर्व पर बढती उम्र का असर क्या होता है?

बढ़ती उम्र के साथ ओव्हेरियन रिजर्व में व्यय होते रहता है | बीजाण्डोंकी की संख्या तथा गुणवत्ता दोनों में घटाई होती रहती हैं | बीस से तीस तक की उम्र में यह रिजर्व शिखर पर रहता है | तीस के बाद, खास कर के पैंतीस के बाद उसमें घटाई शुरू होती है | बढ़ती उम्र में गर्भाशय भी क्षीण होता है ऐसा लोग कई सालों तक मानते थे | लेकिन आज प्रजनन क्षमता की कमी का प्रमुख कारण स्त्री बीजों का जरण (एजिंग) है ऐसा माना जाता है | पैंतीस उम्र के आगे स्वस्थ और जीवक्षम अण्डों का निर्माण करने की अक्षमता गर्भधारण के क्षति का तथा गर्भविफ़लता का अनुपात बढता है |

ओव्हेरियन रिजर्व घटने का अनुमान कैसे लगाया जाता है? 

ओव्हेरियन रिजर्व में घटाई होने के कोई दृश्यमान लक्षण नहीं होते | कुछ महिलाएँ माहवारी का अंतराल घटता हुआ महसूस कर सकती हैं | जैसे की २८ दिन से २५ दिन | लेकिन ज्यादा तर ओव्हेरियन रिजर्व की जाँच करने के बाद ही घटाई का निदान होता है | विश्वसनीय निदान के लिए ट्रांस-व्हजायनल अल्ट्रासाउंड जाँच फॉलिकल गिनती (ऍनट्रल फॉलिकल काउंट – एऍफ़सी) और एंटी म्युलेरियन हार्मोन (एएम्एच) के लिए रक्त परिक्षण करना जरुरी     हैं | 

क्या ओव्हेरियन रिजर्व की जाँच कराना मातृत्व की अपेक्षा रखनेवाली सब महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है?

जननक्षम होने की मनीषा रखनेवाले जोड़ों के लिए ओव्हेरियन रिजर्व की जाँच कराना एक महत्वपूर्ण कदम है | इस जाँच के बाद रिजर्व में घटाई है या नहीं निश्चित करना और उसके बाद ही इलाज की प्रणाली निश्चित करना जरुरी हैं | जिन महिलाओं का रिजर्व घटा हुआ है उनके लिए अवसर की खिड़की कम समय ही खुली रहती है | उनके लिए उचित प्रणाली कम से कम समय में निश्चित करना हितकारी होगा | ऐसा करने से सफलता हासिल करने का मौका रहता है |

अशुक्राणुता (अज़ूस्परमिया)

अशुक्राणुता का मतलब वीर्यपात में शुक्राणु का (स्पर्म) अभाव रहना | जिन में यह अवस्था दिखाई देती है उन में से बहुतांश मर्द स्वाभाविक कामवासना और यौनक्रिया का अनुभव करते हैं | उन का वीर्य भी सर्वसाधारण ही होता     है | अशुक्राणु अवस्था का निदान वीर्य परीक्षा के बाद ही किया जा सकता है | 

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अज़ूस्परमिया के कारक घटक क्या हैं?

अशुक्राणु अवस्था वीर्य नलिका में प्रतिरोध निर्माण होने से आ सकती है | ऐसे घटक प्रतिरोधक घटक कहलाते हैं | इस के अलावा अप्रतिरोधक कारक भी हो सकते हैं | वृषण शुक्राणु की निर्मिति करनेमे अक्षम हो या अल्पसंख्या शुक्राणु निर्माण करता हो तो ऐसे कारक अप्रतिरोधक घटक कहलाते हैं |

प्रतिरोधक घटक (ऑब्सट्रक्टिव अज़ूस्परमिया)-

  • शुक्राणु का वहन करनेवालीदुतरफा नलिकाओं की नामौजूदगी – यह पैदाइशी (कंजेनिटल) दोष होता है 
  • घाव या जख़्म
  • वीर्य वाहक नलिकाओं में रूकावट
  • संसर्ग (इन्फेक्शन)
  • पूर्व शल्यचिकित्सा
  • नसबंदी (वासेक्टोमी) 
 

अप्रतिरोधक घटक (नॉन-ऑब्सट्रक्टिव अज़ूस्परमिया)-

  • हार्मोन असंतुलन 
  • वृषणस्थित नसों में फुलावट (व्हेरिकोसील)
  • औषधि-प्रयोग
  • वीर्यक्षेपण की कठिनाइयाँ 
  • पैदाइशी घटक 
  • कैंसर (कीमोथेरपी, रेडिएशन) 
 

अशुक्राणुता का निदान कैसे किया जाता है? 

दो अलग जाँच के बाद अगर वीर्य में शुक्राणु का अभाव दिखाई दिया तो यह निदान निश्चित होता है |

जाँच के बाद क्या कदम उठाए जाते है? 

अशुक्राणुता जाँच के बाद आपके फर्टिलिटी डॉक्टर आपको मूत्र-प्रणाली विशारद (युरोलोजिस्ट) के पास भेजेंगे | वहाँ वृषाणु विस्तार, शुक्राणुवाहक नलिकाओं की मौजूदगी या नामौजूदगी, अधिवृषण की फुलावट, व्हेरिकोसील होना या न होना, शुक्राणु वाहक नलिकाओं में रूकावट हैं या नहीं इन की जाँच की जाती है | 
निम्नलिखित परिक्षण (टेस्ट) सूचित होते हैं:

  • टेस्टोस्टिरोन और एफएसएच हार्मोन की मात्रा
  • अनुवंशिकपरिक्षण 
  • ट्रांस रेक्टल युएसजी
 

इस हालात के लिए इलाज के क्या विकल्प उपलब्ध हैं? 

शारीरिक और खून जाँच के रिपोर्ट, सहचारिणी की उम्र और प्रजनन कार्यक्षमता इन के निष्कर्षों के आधार पर इलाज का रुख़ तय किया जाता है | अनुमानित कारकों के अनुसार इलाज के विकल्पों को परखा जाता है | कुछ मामलों में हार्मोन का असुंतलन दवाइयों के इलाज से ठीक करके शुक्राणु निर्माण को बढ़ावा दिया जा सकता है | वीर्य नलिकाओं में नसबंदी या अन्य कारणवश कोई रूकावट आई हो तो शल्य चिकित्सा का विकल्प सोचा जा सकता है | कुछ मर्दों के मामलों में व्हेरिकोसील की शल्यक्रिया संभव हो सकती है | कुछ मामलों में शल्यक्रिया द्वारा ICSI प्रणाली के लिए शुक्राणु का निष्कर्षण किया जा सकता है | यह शुक्राणु निष्कर्षण शल्यक्रिया सफल होने के लिए प्रशिक्षित, अनुभवी विशेषज्ञ द्वारा शल्यक्रिया कराना बहुत महत्वपूर्ण है | 

शुक्राणु निष्कर्षण के लिए क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं? 

शल्यक्रियाद्वारा शुक्राणु निष्कर्षण के कई तरीके हैं | अधिवृषण में बाहर से सुई डाल कर शुक्राणु द्राव खींचा जाता है | इसे परक्यूटेनीयस एपीडीडायमल  स्पर्म एस्पिरेशन (PESA) कहा जाता है | शल्यक्रिया द्वारा वृषाणु का छेद लेकर कुछ ऊतक उठाए जाते हैं जिससे शुक्राणु की प्राप्ति हो सकती है | इसे टेस्टीक्यूलर स्पर्म  एक्सट्रैक्शन (TESE) कहा जाता हैं | सूक्ष्मशल्यक्रिया द्वारा अधिवृषाणु से शुक्राणु उठाए जाते हैं | इसे माइक्रोसर्जिकल एपीडीडायमल  स्पर्म एस्पिरेशन (MESA) कहा जाता है | अन्य भी कुछ तरीके हैं | जिनकी अशुक्राणु अवस्था वीर्य नलिका में रूकावट के कारण होती है उनके पास शुक्राणु-निर्मिति की कमी नहीं होती | उपर्निर्दिष्ट तरीकों में से उचित तरीका काम आ सकता है | ऐसे मर्दों के मामलों में TESE, micro-TESE और ICSI की शिफारिस की जाती है |

शुक्राणु गिनती में गिरावट (लो स्पर्म काउंट)

शुक्राणु की न्यून मात्रा, शुक्राणु की सुस्तगति प्रवृत्त्ति (मोटिलिटी) या शुक्राणु का सदोष ढाँचा (स्ट्रक्चर) आदि कारकों की वजह से मर्दों में अपर्याप्त प्रजननशक्ति का अनुभव होता है | इसे ओलिगोअस्थेनोटेराटोज़ूस्पर्मिया (OAT) कहा जाता है | वीर्य की जाँच के बाद इसका निदान होता हैं | ये तीनों दोष अलग अलग या इकठ्ठा पाए जाते हैं |

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वीर्य जाँच (सीमेन टेस्ट)

प्रजनन समस्याओं का हल ढूंढनेकी सभी प्रणालियों में वीर्य-परीक्षा एक महत्वपूर्ण कदम होता है | 

WHO के दिशा निर्देशों के अनुसार निम्न लिखित परिमाण प्रमाण माने जाते हैं | 

  • वॉल्यूम: 1.4 एमएल या उस से ज्यादा 
  • स्पर्म कंसंट्रेशन: 16 मिलियन प्रति १ एमएल या उस से ज्यादा 
  • टोटल स्पर्म काउंट: 40 मिलियन या उस से ज्यादा
  • मोटिलिटी: 30% या उस से ज्यादा आगे की तरफ या 42% या उस से ज्यादा टोटल मोटिलिटी
  • रूपरचना (मॉर्फोलॉजी): 4% से ज्यादा शुक्राणु सामान्यरूप
 

यह जाँच कम से कम दो दफा करना आवश्यक हैं |

OAT याने शुक्राणु की न्यून स्तरीय मात्रा, दुबला फुर्तीलापन और उन की असामान्य रुपरचना इनके कारण क्या हैं? 

  • अज्ञातकारण(इडीओपैथिक) – 30% से ज्यादह मामलोंमें कारणों का पता नहीं लगता  है 
  • हॉर्मोन प्रोब्लेम्स- (प्रोलैक्टिन नमक हार्मोन की मात्रा ज्यादा होना, थायरॉइडकी समस्याएँ आदि)
  • मोटापा
  • व्हेरिकोसील
  • पैदाइशी दोष जैसे की क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम
  • कैंसर और उसके इलाज
  • पूर्व शल्यक्रिया – वृषाणु सम्बंधित, ना-उतरे हुए वृषाणु या जंघास का हार्निया
  • पर्यावरणविषयककारक 
  • जीवन शैली सम्बंधित – ड्रग्स, शराब, धूम्रपान, खैनी, नशा, एनाबोलिक स्टिरोइड आदि
 

इलाज के लिए क्या विकल्प उपलब्ध हैं? 

बुनियादी कारक का इलाज होना ज़रूरी है | उदहारण के तौर पर, जिन्हे हॉर्मोन प्रोब्लेम्स या संसर्ग हैं उन्हें उन कारकोंका इलाज कराना चाहिए | स्वस्थ जीवन शैली निभाना, नशा-पानी, तमाखू, धूम्रपान अदि से दूर रहना बेहतर | अंडकोषीय क्षेत्र को गर्मी से सुरक्षित रखना चाहिए | बहुत सारे व्हिटामिनोंका अभ्यास हो चुका है लेकिन आमतौर पर यह दिखाई दिया हैं की एंटी-ऑक्सीडेंट या व्हिटामिन से शुक्राणु गिनती में कोई नाट्यमय सुधार नहीं आता |

अगर OAT बना रहें तो उसकी वजह अन्य कारकों से जुडी हुई हो सकती हैं | तब सहायक प्रजनन तकनिकी से (असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी- ART) काम लेना अच्छा | ऐसे मामलों में इंट्रायुटेरिन इनसेमिनेशन (आययुआय-IUI) या  आयव्हीएफ/आयसीएसआय (IVF/ICSI) जैसे उपयोंका इस्तेमाल सोचना चाहिए | शुक्राणु की गिनती न्यून स्तर पे होना इसका मतलब यह नहीं की स्वाभाविक तरह से गर्भधारण प्राप्त नहीं हो सकता | हो सकता है की गर्भधारण के लिए औसत से ज्यादा समय लगे | दवाई से काम बन सकता है या नहीं यह जानने के लिए और इलाज के अन्य विकल्प के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए फर्टिलिटी डॉक्टर की सलाह लेना जरुरी होता है |