आयव्हीएफ इलाज पद्धतिका सीधा-सरल परिचय

By Dr Sneha Sathe, Fertility Consultant, Nova IVF Fertility Mumbai

आम तौरपर आयव्हीएफ ट्रीटमेंट शुरू करनेका निर्णय शुरूमें कपल्स को उत्साहजनक लगता हैं | लेकिन जैसे जैसे उपचार पद्धति आगे बढती है वैसे उन्हें अनेक किसमके भावनिक दाबोंका सामना करना पडता हैं | “डॉक्टर, क्या यह इलाज मेरे लिए ठीक हैं? दूसरा कोई रास्ता नहीं? क्या क्या होता है आयव्हीएफ ट्रीटमेंट में ? क्या आप सफलता की गारंटी दे सकते हो?” ये सवाल मन में बार बार उभर आते हैं | इन सवालों का ब्यौरा इस ब्लॉग-पोस्ट में मैं करना चाहती हूँ|

आप जब आयव्हीएफ के रस्ते पर चलना शुरू करते हैं तब आगे क्या रक्खा हैं इस के बारे में आप के मन में संदेह जरूर रहेंगे | हर एक जोड़े की केस अद्वितीय रूप से अलग अलग होती है | लेकिन आगे चलते चलते कौन से महत्त्वपूर्ण सीमाचिन्ह दिखाई देंगे उन से मैं आप को मुहैय्या करना चाहती हूँ | आयव्हीएफ सफर के दौरान आप किस किस अनुभूतियों से गुजरेंगे यह समझने के लिए वास्तव में आयव्हीएफ के माने क्या हैं, हर कार्यविधि कैसे काम करती है यह आप को अवगत करना होगा | 

कुछ कपल्स महीनों से या बरसों से गर्भधारण करने के प्रयास में जुटे होते हैं | आम तौर पर दूसरे सभी इलाज नाकामयाब होने पर आयव्हीएफ के इलाज के बारे में सोचा जाता है | लेकिन कुछ कपल्स ऐसे भी होते हैं जिन के लिए शुरू से ही दूसरा रास्ता मुमकिन न हों |

आयव्हीएफ की तरफ बढ़ने के लिए सूचित करनेवाले अनेक लक्षण होते है | निम्न लिखित अवलोकन के मुद्दे आयव्हीएफ की तरफ बढ़ने के संकेत देते हैं | 

  • फैलोपियन ट्यूब (डिंबनालिका) में दोष
  • अधिक उम्र की महिलाएं
  • एंडोमेट्रिओसिस
  • पुरुषों से सम्बंधित कारक 
  • सर्रोगसी की जरुरत
  • डोनर एग की जरुरत
  • IUI प्रणाली में विफलता

आयव्हीएफ पद्धति कई दशकों से प्रचलित है | इस पद्धतीमें स्त्रीबीज और शुक्राणु इनका प्रयोगशालामें वैज्ञानिक तरीकेसे संयोग एवं निषेचन (फर्टिलाइजेशन) किया जाता है| लेकिन, इस कदम के पहले भी और बाद में भी कई कदम उठाने पड़ते हैं | चलें, आयव्हीएफ प्रोसेस के पांच महत्त्वपूर्ण कदमों का ब्यौरा देखें | 

आयव्हीएफ प्रणाली के पांच महत्त्वपूर्ण कदम:

1.अंडाशय को स्त्रीबीज बनाने के लिए उत्तेजित करना (कंट्रोल्ड ओवेरियन हैपरस्टिम्युलेशन)- 

नियमित माहवारी का अनुभव करनेवाली स्त्रीमें आम तौर पर हर माह एक बीज (फॉलिकल) तैयार होता है | आयव्हीएफ प्रणाली में ज्यादा स्त्रीबीज तैयार करने के लिए कुछ फर्टिलिटी औषधिं का उपयोग अंडाशय को प्रोत्साहित किया जाता हैं | ये दवाइयाँ गोनाडोट्रोपिन नामसे जानि जाती हैं | आपको नियमित रूप से अल्ट्रासाउंड जाँच करनी पड़ती हैं | इन जांचों के दौरान फॉलिकल्स के विकास और गर्भाशय के लाइनिंग की जानकारी उपलब्ध होती हैं| 

2. बीजाण्डों को निकलने का प्रोसीजर (ऊसाइट पिक उप)-

बीजाण्ड परिपक्व होने के लिए ट्रिगर इंजेक्शन दिया जाता हैं | इंजेक्शन देने के बाद ३४ से ३६ घंटों में एक छोटी शल्यक्रिवा द्वारा बीजाण्डों को हलके से निकला जाता है | आपके फर्टिलिटी डॉक्टर अल्ट्रासाउंड की मदद से एक सूक्ष्म सुई को योनि मार्ग से अंदर डालकर सावधानीसे अंडाशय की तरफ बढ़ाते है और सुई की एक तरफ लगे हुए यंत्रसाधन के माध्यम से दोनों अंडाशय के अंदरसे एक एक कर के हलके हलके से स्त्रीबीजों को निकालते हैं |

इस प्रक्रिया के दौरान स्त्री को कोई तकलीफ महसूस ना हो इस लिए दवा देकर बेहोश किया जाता है | प्रक्रिया के पश्चात आपको सिकुड़न महसूस हो सकती है | लेकिन वह सिकुड़न एक दिन में मिट जाती हैं | इसके अलावा पेट फूल कर थोड़ा दबाव महसूस हो सकता है | यह स्थिति चन्द दिन टिकी रह सकती  है |

3. वीर्य का सैम्पल-

आप के पति को प्रयोग शाला में जा कर यह सैम्पल निर्जन्तुक बोतल में निष्कासित करना होता है | इस सैम्पल से प्रयोगशाला में स्वस्थ शुक्राणू सम्पादित किये जाते हैं |

4. शुक्राणू और बीजाण्ड का आयव्हीएफ प्रयोगशाला में निषेचन-

आयव्हीएफ प्रक्रिया में शुक्राणू और बीजाण्ड कांच के एक तश्तरी में रखे जाते हैं जहाँ निषेचन क्रिया नैसर्गिक ढंग से पार हो जाती हैं | अगर किस वजह से यह नैसर्गिक तरीका मुमकिन ना हो तब शुक्राणु को कांच के बने एक सूक्ष्म सुई द्वारा परिपक्व बीजाण्ड में इंजेक्ट किया जाता हैं | इस क्रिया को इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आयसीएसआय) कहते हैं |
अगले ३ से ६ दिन तक निषेचित बीजाण्ड (गर्भ) का आयव्हीएफ प्रयोगशाला में पोषण होता हैं |

5. फलित गर्भ का गर्भाशय में प्रत्यारोपण (एम्ब्र्यो ट्रांसफर)-

ऊसाइट पिक उप के दिन आपको अलग दवाइयां शुरू करने की सलाह दी जाती है | गर्भाशय के अंदुरनी सतह (त्वचावरण) को गर्भ प्रत्यारोपण के लिए तैयार करना यह इस दवाईका मकसद होता हैं | तीसरे या पांचवे दिन गर्भ को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने के लिए कैथिटर का प्रयोग किया जाता हैं | एम्ब्र्यो ट्रांसफर के दौरान स्त्री को बेहोश करने की जरुरत नहीं होती |

कुछ स्थितियों में उसी सायकल में एम्ब्र्यो ट्रांसफर ना कर, फलित गर्भोंको अतिशीत पेटी में सुरक्षित रखा जाता है | फिर एक दो महीनो के बाद फ्रोजन एम्ब्र्यो ट्रांसफर का प्रोसीजर किया जाता है |

अब दो हप्तों के पश्चात् प्रेग्नन्सी टेस्ट की जाती हैं | आयव्हीएफ प्रोसेस वैसे भी कठिन माना जाता है | मेरे कई पेशंट तो कहते हैं की आखिरी के २ हप्ते ज्यादा कठिन लगे और प्रेग्नन्सी टेस्ट करनेका इंतजार उनके जीवन का सबसे ज्यादा लम्बा अंतराल था !

एम्ब्र्यो ट्रांसफर के बाद बेडरेस्ट जरूरी नहीं होती, और असल में बेडरेस्ट ना ले यह सलाह दी जाती है | नियत दवाइयाँ जारी रखनी होती है | आप को उस दौरान व्यस्त रहना है, बस्स ! हाँ, कोई भारी शारीरिक काम और संगम टालना होता हैं | दो चार दिनों के बाद आप हलका व्यायाम, थोड़ी पैदल टहलचहल या योग शुरू कर सकती हैं |

इस दौरान आप का ध्यान अपने शरीर के प्रति कुछ जयादा केंद्रित हो सकता हैं और उस के कारण हर एक छोटेमोटे लक्षण आपको हैरान कर सकते हैं | आप सिकुड़न, हलका ब्लीडिंग या खून के धब्बे, पेट में फूलन, थकान और स्तनों में कोमलता का संवेदन इन का अनुभव कर सकती हैं | इन लक्षणों से आप चिंतित या शंकित हो सकती हैं लेकिन ऐसे लक्षण आम हैं | उन का मतलब प्रेग्नन्सी है या नहीं है ऐसा नहीं निकाला जा सकता | प्रेग्नन्सी टेस्ट के बाद ही कामयाबी का पता चल सकता है |

अगर आप शंकित हैं, आपको कोई परेशानी है या आप को कुछ प्रश्न हैं तो आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें | आप के विशिष्ट केस से परिचित होने के कारण वे आप को सही मशवरा दे सकती हैं |  

ऑल  दी  बेस्ट !!